"मधुर वचन है औषधि, कटु वचन है तीर|
श्रवण द्वार हौ संचरे, साले सकल सरीर||"
श्रवण द्वार हौ संचरे, साले सकल सरीर||"
अर्थात मधुर वचन औषधि के सामान हैं, जो रोग का निवारण करते हैं. कटु वचन तीर की भांति ह्रदय को आघात पहुंचाते हैं. हमारे द्वारा बोले गए शब्द कान रूपी द्वार से शरीर रूपी घर में प्रवेश करके सारे शरीर को प्रभावित करते हैं.
कटु वाणी के प्रयोग का परिणाम बहुत भयंकर हो सकता है. द्रौपदी के द्वारा दुर्योधन को बोले गए कटु वचन महाभारत का एक कारण बने. इसका परिणाम कितना भयानक हुआ यह तो सर्वविदित है. जहाँ वाणी में माधुर्य होता है, वहीँ ज्ञान और विवेक भी होता है. वाणी में मधुरता, प्रियता और सत्यता के समन्वय से जीवन में आनंद मिलता है. हमें सदैव ऐसी वाणी और शब्दों से बचना चाहिए जो औरों को ठेस पहुंचाएं. कबीरदास जी ने आगे कहा है कि:
"ऐसी बानी बोलिए मन का आप खोय|
औरन को सीतल करे आपुह सीतल होय||"
औरन को सीतल करे आपुह सीतल होय||"
तुलसी दास जी कहते हैं:
"तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजे चहुँ ओर|
वशीकरण यह मंत्र है, तजिये वचन कठोर||"
कविवर रहीम कहते हैं:
"दौनों रहिमन एक से, जौ लौं बोलत नाहीं|
जान परत है काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं||"
जान परत है काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं||"
कौवा और कोयल जब तक बोलते नहीं, एक समान ही प्रतीत होते हैं. परन्तु ऋतुराज वसंत के आने पर कोयल की कुहू कुहू और कौवे की कांय-कांय दोनो का अंतर स्पष्ट कर देती है. आशय यही है कि मनुष्य को अपनी वाणी मधुर और कोमल रखनी चाहिए अन्यथा लोग उसका उपहास उड़ायेंगे और समाज में तयाताज्य रहेंगे. एक बड़े नेता से गाँधी जी ने उनकी भाषा के कारण हमेशा दूरी बनाये रखी, परन्तु गाँधी जी उनकी विद्वता के हमेशा कायल रहे. संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अर्थ रहीमदास जी के उपरोक्त दोहे के समान है.
"काक: कृष्ण: पिक: कृष्ण:, का भेद पिकाकयो|
वसंत समय प्राप्ते, काक: काक: पिक: पिक:||"
वसंत समय प्राप्ते, काक: काक: पिक: पिक:||"
मधुर वचन के महत्त्व पर कबीरदास जी के अन्य दोहे हैं:
कागा काको धन हरे, कोयल काको देय|
मीठे वचन सुनाय के, जग अपनो कर लेय||
मीठे वचन सुनाय के, जग अपनो कर लेय||
आवत गारी एक है, उलटी होत अनेक|
कहे कबीर न उलटिए, रहे एक की एक||
