शनिवार, सितंबर 04, 2010

सीख

आज बहुत दिनों बाद चिठ्ठा लिखने बैठा. परन्तु सीधा ब्लॉग पर न डालते हुए, google.com/transliterate/ पर टाइप करने लगा. पूरा लिख चुका था पर backspace ने सब गुड गोबर कर दिया. Correction के लिए backspace दबा दिया और पूरा पेज ही मिट गया. इससे यही सीख मिली की अब जब भी लिखुंगा, सीधा ब्लॉग पर ही लिखुंगा. इसमे पोस्ट स्वतः सुरक्षित होती रहती है.

आज के लिए मैं माफ़ी चाहूँगा. वैसे मेरा एक सप्ताह तो मेरी बीमारी में चला गया, और पिछले तीन चार दिन ऐसे ही मटरगश्ती में निकल गए. मुझे शिकायते मिलने लगी है. एक साहब ने कह दिया है कि अब मेरे चिठ्ठे पर धूल चढ़ने लगी है.

तो अब आज के छोटे से इस लेख से धुल हटाई है. कल आपके लिए हाजिर होगा मेरा धुल का फूल यानी एक नयी रचना, जो समर्पित होगी उन लोगों के लिए जिन्होंने अपना कुछ वक़्त छात्रावास में बिताया है. मैं इसे हिंदी का फूल बनाने का भरसक प्रयास करूंगा. पाठक इसे हिंदी का फूल ही मानेंगे या वो खुद अंग्रेजी का फूल बनेंगे, यह तो पोस्ट पढ़ कर ही पता चल सकेगा.

इसी के साथ मैं अपने प्यारे बिस्तर के लिए प्रस्थान करता हूँ. इन्तजार रहेगा आपकी खट्टी-मीठी टिप्पणियों और चिठ्ठियों का, कड़वी भी चलेंगी, जीवन की सच्चाई जैसी.

मनोज

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