शनिवार, अप्रैल 30, 2011

हमारी राष्ट्रभाषा

एक प्रश्न: हमारी राष्ट्रभाषा क्या है!
उत्तर: हमारी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है.

क्या????? 

जी हाँ हमारी कोई राष्ट्र भाषा नहीं हैं.

हैरान हैं! मैं भी हुआ था. मुझे भी ऐसा ही एक झटका लगा था कि हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी नहीं है. हिंदी भारतीय गणतंत्र की अधिकारिक भाषा है. मतलब हमारे सारे सरकारी कामकाज हिंदी में होते हैं. अंग्रेजी हमारी दूसरी अधिकारिक भाषा है.

सुधिजन कहते हैं, बिना राष्ट्र भाषा के वह देश मूक बधिर है. दोस्तों हम १८०० से ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं के साथ गूंगे बहरे हैं.

जिम्मेवार कौन? हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर, कुछ लोगों ने आपत्ति की . परन्तु आपत्ति करने वाले इसके लिए दोषी नहीं हैं. दोषी हैं हम, हिंदी भाषा भाषी लोग. मूलरूप से तो तमिल नेताओं ने हिंदी के राष्ट्रभाषा होने का विरोध किया. सबसे पहले तमिलनाडु में हिंदी विरोध शुरू हुआ. और यह आजकल की बात नहीं है. यह शुरू हुआ १९३७ से. मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहता. क्योंकि इन लाइनों को पढ़ने के बाद बहुत से लोगों को अचरज होगा और बाकि लोगों का खून उबाल ले रहा होगा - "इन मद्रासियों ने हिंदी विरोध कैसे कर दिया. छोड़ेंगे नहीं इन्हें."

क्या तमिल वाकई जिम्मेवार हैं? मेरा जवाब है नहीं. तब क्या राज ठाकरे - अरे नहीं.
इसके लिए जिम्मेवार हैं हम. हम यानी भारत की सारी जनता जो एक भाषा पर एक मत नहीं हो सके. तमिल, मराठी, असमी और अन्य हिंदी विरोधी लोग, हिंदी को अपनी भाषा नहीं मानते. उनके अनुसार, हिंदी भाषी इसे थोपना चाहता हैं. किसी भी दक्षिण भारतीय को मद्रासी बोल देना, बहुत आम है. लोगों को यह नहीं मालूम हैं कि ४ दक्षिण भारतीय राज्य हैं. और चारों राज्य चार अलग भाषाएँ बोलते हैं. बिहारी को गाली की तरह इस्तमाल करना. किसी भी उत्तर पूर्वी भारतीय को चीनी कहना और फिर खींसे निपोरना. यह सब उत्तरी भारतीयों की आम आदत में शुमार है.  

कोई मलयाली, तेलगू या कन्नडवासी अपने को मद्रासी सुनना नहीं चाहेगा. हमारी लापरवाही का नतीजा है यह. शायद हम और भाषाओं का सम्मान नहीं करते. उनके हिंदी लहजे का मजाक उड़ाते हैं. खासतौर से हिंदी फिल्मों में, विज्ञापनों में. यही हालत उत्तर-पूर्व के राज्यों की है. लोग उन्हें चीनी कहते हैं. लोग दूसरे राज्यों में जा कर वहां की भाषा नहीं सीखते.


यहाँ मैं एक महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहूँगा. सारे middle east में हिंदी संपर्क भाषा का काम करती है. यहाँ middle east में भारतीय प्रायदीप के लोग (भारतीय, श्री लंकाई, नेपाली, बंगलादेशी, पाकिस्तानी और अफगानी) ज्यादा हैं. और यहाँ के अरबी भी हिंदी समझ लेते हैं. दुबई हवाई अड्डे पर मैंने अरबी लोगों को नेपाली मजदूरों से हिंदी में बात करते सुना है.

परन्तु मैं राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी नहीं चाहता. राष्ट्र भाषा होनी चाहिए भारती”. इस भाषा में हिंदी हो, उर्दू की नजाकत हो, पंजाबी का जोश हो, तमिल का "ल" हो. एक ऐसी भाषा जो हमारी १८ भाषाओ का मिश्रण हो. उसमे सभी भाषाओं और लिपियों के वर्ण और शब्द हों. एक नयी भाषा जो सबको अपनी लगे. हम नॉन-तमिल kozhikode को सही उच्चारित कर ही नहीं सकते. हम पढेंगे कोझिकोड. परन्तु यह है कोडिकोड, यह उच्चारण तमिल उच्चारण के सबसे करीब है.

यह तो एक बानगी है. अभी तो काम शुरू करना है.

आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में - मनोज

3 टिप्‍पणियां:

चन्द्रकांत दीक्षित ने कहा…

मनोज जी मेरी राय में तो भाषा जोड़ने का काम करती है दो व्यक्तियों से लेकर दो देशों तक विचारों का आदान प्रदान भाषा से ही संभव है. भाषा पर विवाद या भाषा से विवाद होने का कारण प्रयोग करने वाला है न की भाषा

Unknown ने कहा…

दीक्षित जी,
भाषा संचार, संपर्क और संप्रषण का माध्यम है.
यहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भाषा शाश्वत अथवा सनातन नहीं है. मतलब भाषा अजर और अमर नहीं है. भाषा को हर क्षेत्र के लोगों ने अपनी सुविधा के हिसाब से गढ़ा है.
हाँ, भाषा से जोड़ने के काम की उम्मीद की जाती है. परन्तु व्यक्ति अपनी और अपनी भाषा की श्रेष्ठता सिद्ध करने में लगा रहता है. यहीं से भाषा तोड़ने का काम शुरू कर देती है. पाकिस्तान के दो टुकडे होने में भाषा का बहुत बड़ा हाथ है. पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पकिस्तान), पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश)पर उर्दू थोपने का प्रयास करता रहा. परिणाम क्या रहा, बांग्लादेश आपके सामने है. आज वहां की राष्ट्रभाषा बांग्ला है. महाकवि रविन्द्र का "हमारा शोनार बांग्ला" उनका राष्ट्रगान है.अन्य ज्वलंत उदाहरण, युगोस्लाविया, ३ राष्ट्रभाषाओंवाला अनूठा देश था. ३ राष्ट्रभाषा होना ही वहां की समस्या थी. आज कितने हिस्से हो गए. पता भी नहीं चलता, सबसे नया है कोसोव और सर्विया.
भाषा को आदमी ने बनाया, संचार माध्यम के लिए. जोड़ने के लिए, न कि तोड़ने के लिए. अगर भाषा से फूट पड़ने लगे तो नयी भाषा के साथ पुरानी को त्याग दो. अगर सुधार से काम चले तो सुधार करो. याद रखो आदमी बहुत सारी भाषा बना सकता है. परन्तु संसार की सारी भाषाएँ मिलकर एक आदमी तैयार नहीं कर सकती.
-मनोज

Unknown ने कहा…

Hindi aur Urdu in do bhashaon ne milkar angrezon ke hathon se is desh ko cheena hai hamare Bharat ki adhikarik bhasha hone ka gaurav in dono hi bhashaon ko milna chahiye