शनिवार, अगस्त 14, 2010

मैं और कसप....



http://www.abhivyakti-hindi.org/ पर मनोहर श्याम जोशी जी को ढूँढ रहा था. और मैं उनका नाम ही भूल गया. फिर उनके कालजयी हिन्दी सीरियल "बुनियाद" ने मुझे रास्ता दिखाया. उनके विकिपीडिया पेज पर कसप मिल गया. वहाँ से गूगल देवता के सहारे पहुँच गया एक और ब्लॉग पर. मनीष जी ने बहुत ही बढिया चर्चा की है. वहाँ से मैं यादों के समुंदर मैं गोते लगाने लगा. मेरा बी ई का सेकेंड सेम, १९९२ की बातें है यह. जब कसप से सामना हुआ.

यह उपन्यास मैने कई बार पढ़ा है. पहले कॉलेज की लाइब्ररी से लेके पढ़ा था. उसे छुट्टियों मैं घर ले गया और फिर आते वक़्त घर पर रहा गया. पुस्तक की कीमत से ज़्यादा फाइन हो गया था. इसे घर से रजिस्ट्री से मँगाया गया. फाइन माफ़ करने के लिए डा. सचान से मिन्नतें की गयी पर फाइन पूरा ही भरना पड़ा. मुझे तो इश्क हो गया था कसप से. फिर इसकी चर्चा होती थी राजेश प्रसाद त्रिपाठी से.

कॉलेज के बाद और शादी से कुछ महीने पहिले खरीद ही लिया था बाज़ार से. सोचा पत्नी के साथ पढ़ा जाएगा. पढ़ा भी पर उन्हें इतना पसंद नहीं आया. वो श्रीमति जोशी जैसी पाठिका नहीं है. और इसके बाद नौकरी ने कुछ ही दिनों बाद सहित्य को पूर्ण विराम लगा दिया.

मुझे इसमे जिलेंबू बहुत पसंद आया था. बेबी का अल्हड़पन और डी डी का डरपोक प्यार....... शीबो शीबो वाला प्रकरण हिला देता है.

यह मेरी प्रिय पुस्तक है. सोचता हूँ इस बार भारत आने पर अपनी कुछ किताबें लेके आऊं, कसप, गीता और प्रेमचंद की कुछ किताबें.

-मनोज कुमार शर्मा, दोहा, क़तर

1 टिप्पणी:

Manish Kumar ने कहा…

जानकर प्रसन्नता हुई की मेरी कसप पर लिखी पुस्तक चर्चा ने आपको इस किताब से जुड़ी यादों को बाँटने के लिए प्रेरित किया।

मुझे भी जोशी जी की किताब पढ़ कर बहुत अच्छा लगा था और मेरी मनोभावनाएँ उस पोस्ट में स्वतः आ गई थीं।