बुधवार, अगस्त 18, 2010

जिकरीत भ्रमण

अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा, हिंदी साहित्यिक निबंध, बारहवीं कक्षा में पढ़ा था. पहिले तो शीर्षक ही बहुत भयानक सा लगा, उस पर लेखक का नाम राहुल संकृत्यायन. फिर भी पढ़ तो डाला ही था. उस समय निबंध में लिखा एक शेर ही समझ आया था.

"सैर कर दुनियाँ की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ?
जिन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ" - इस्माइल मेरठी

आजकल घुमक्कड़ी करने का मन करता है. और ईश्वर की दया से मौका मिल ही जाता है. अब उस निबंध का मर्म समझ आने लगा है.

और इस बार तय किया हम तीनो ने कि जिकरीत चलते हैं. तीन - तिलंगे, तीन फोर्स्ड बेचलर्स. प्रवीण राठी, नंदकुमार और मैं. इस बार नंदकुमार पहले से ज्यादा तैयारी के साथ था. खाने पीने के सामान की लिस्ट लेकर पहुच गए Carrefour और उसमे सबसे जरूरी था हवा का दबाव नापने के लिए gauge. Gauge का लिस्ट में होना नन्द की तैयारी को साबित कर रहा था. इस बार उसने नेट पर काफी जानकारी इक्कठी की थी. मॉल में Gauge को मुझे ढूँढना पडा था. क्योंकि वहां पर तैनात किसी कर्मचारी को नहीं मालूम था Gauge क्या है. और उन सभी ने घोषणा कर दी कि यहाँ नहीं है. पर उनके चहरों से साफ़ लगा था कि वो नहीं जानते कि हमें क्या चाहिए था. मैंने gauge को अल-मीरा में देखा था. (यहाँ अल-मीरा का अभिप्राय अल-मीरा नाम के मॉल से है ने कि अलमारी से). और कुछ प्रयास से मैंने ढूंढ ही लिया. इसके बाद तो हमारे टिपिकल जाट भाई ने, जोकि गलतफहमी से सॉफ्ट परसन माने जाते हैं, उन सभी कर्मचारियों से उनकी इस भारी भूल को मनवा लिया. सही था. ऐसे कैसे एक कर्मचारी को अपनी ही दुकान के बारे में ही नहीं मालूम.

अरे हाँ, इस बार हम चार थे पार्तिबान भी था हमारे साथ.

काफिला चल पड़ा. गाइड था गूगल मैप. जोकि हमेशा की तरह नन्द के हाथ मैं था. जकरीत दुखान (दुखान एक शहर का नाम है) से करीब १० किमी पाहिले ही है. इस यात्रा में हमारे गंतव्य काफी हिस्सा उबड़ खाबड़ रास्ते से था. और ध्यान देने वाली बात है कि हमने यात्रा रेत पर नहीं बलुआ ठोस जमीन पर की और हमारी तैयारी रेगिस्तान के लिए थी. वैसे इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

दूर दूर तक वीराना, आदमी न आदमी की जात. मैं अपने तथाकथित* प्रिय Coke कि टिन के साथ था. परन्तु सड़क जोकि नहीं थी, ने Coke पीना मुश्किल कर दिया. धचाकियों ने सारा खाना पचा दिया. प्रवीण भाई ने driving सीट संभाली हुई थी, सो हम रास्ते पर न चल कर रास्ते के समांनातर चलते रहे. हम इस बार रास्ता नहीं भूले, यह हमारी उपलब्धि थी. परन्तु हम अपने गंतव्य पर गए ही नहीं. इस बार हमने जान बूझ कर पुराने फिल्म सिटी जाने का फैसला किया. इस रेगिस्तान के रास्ते पर चलते हुए हमारे मार्गदर्शक बने लकड़ी के डंडे. जोकि सड़क के एक और गाड़ दिए गए थे.

रेत में drive करते हुए गाड़ी के टायर रेत में गड जाते हैं. रेत में drive करना भी एक कला है. रेत में आप हवा का दबाव १२ psi या पौंड कर दे. अब टायर आसानी से नहीं फसेगा. मुलायम रेत पर न जाए. मुलायम और सूखी रेत तो दुश्मन है गाड़ी की. अपने साथ दो लकड़ी के तख्ते ले ले, बहुत काम आते हैं. पानी भरपूर मात्रा में होना चाहिए. सेडान कार तो भूल कर भी ना ले जाये. यह एक अच्छी SUV होनी चाहिए. ground क्लेअरांस जितना ज्यादा हो अच्छा है. अगर आपके पास pick-up ट्रक है तो बढ़िया है.

बाकि कहानी फोटों की जबानी. फोटो जोरदार हैं. मेरे facebook अकाउंट पर फोटो मैं देखे. मेरे एक मित्र ने बताया है कि फोटो लिखने से ज्यादा वजनदार हैं. अब फोटो पर captions डाल कर लेख पूरा करना है.

फोटो देखने के लिए मुख्य शीर्षक पर क्लिक करें.
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*तथाकथित इसलिए की बस यूंही एक बार नन्द को बोल दिया था और एक दो अवसर पर Coke को प्राथमिकता दे दी. बस फिर क्या था, नन्द ने Coke को मेरा प्रिय पेय घोषित कर दिया. मैंने भी इसका कभी प्रतिकार नहीं किया. और Coke मेरा प्रिय पेय बना गया.

-मनोज

1 टिप्पणी:

Dr. K. D. Sharma ने कहा…

Bhai wah kya baat hai.......

Tussi to mahan lekhak ban gaye ho..... keep it up......

CHETAN BHAGAT tention main aane wala hai............



K.D. Sharma