रविवार, अगस्त 15, 2010

मैं और इंटरनेट


जब भी खाली होता हूँ. इंटरनेट से जुड़ जाता हूँ. अकेले में यह एक बहुत अच्छा दोस्त है. याहू, gmail, orkut aur facebook लॉग इन हो जाओ, Wikipedia पढो. सही वक़्त गुजरता है. दुनिया में लोगों से बात करो. लेकिन यही एक दोस्त है, अब तक शायद ऐसे ना सोचा था. कल जब फीस जमा ना करने के कारण इंटरनेट बंद था, तब लगा, जैसे अब कुछ नहीं बचा था. परन्तु ऐसा अकेले मेरे साथ ही ना था. प्रवीण राठी भी ऐसे ही परेशान था. मैने उसे पुस्तक पढ़ते तभी देखा है जब उसके पास समय बिताने के लिए कुछ ना बचा हो. नन्दकुमार तो छुट्टियों मे भारत चला गया है, अब वो फ्लैट मे अकेला रहा गया है. और मैं, मैं तो ६-७ महीनो से पूरे फ्लैट में अकेला ही हूँ. एक महीना तो बहुत ही मजेदार बीता था. जब बच्चे अपनी गर्मियों की छुट्टियाँ मनाने और ज्यादा गरम देश पहुँच गए. दिगर बात यह है कि बच्चो ने यहाँ काफी एन्जॉय किया था.

क़तर का समय कुछ एसा है क़ि भारत मे बात करना इतना आसान नहीं है. जब द्फ्तर के बाद मैं खाली हूँ, तो औरों के पास काम है. पापा तो हमेशा से जल्दी सोते हैं, रात के ८:०० बजे तो गहरी नींद में होते हैं. बच्चों के पास असाइनमेंट्स हैं, पत्नी के पास बच्चे हैं. दो शैतानों को संभालना आसान नहीं है.

ऐसे में खाना बनाना समय बिताने का अच्छा तरीका है. कुछ सब्जी बनाने लगा हूँ, ठीक से आती नहीं है. पर कुछ दोस्त तारीफ कर देते हैं. अगर सही तरीके से देखा जाए तो मैं उसी तरीके के दाल बनता हूँ जैसे मिक्स सब्जी. रोटी पर हाथ साफ़ किया पर कामियाबी अभी कोसों डोर है. रोटी गोल तो होती नहीं. पर अब फूल जाती है . कहीं से जल जाती है और कहीं से कच्ची रह जाती है. मतलब जो रोटी की आकृति बनती है वो रोटी कम U.P. का तो नहीं, राजस्थान का नक्शा ज्यादा लगाती है. पर taste खालिस रोटी का आता है. जोकि आकार और दिखने से ज्यादा महत्वपूर्ण है.

विकिपीडिया पढ़ते-पढ़ते बोर हो चुका हूँ. गाने सुनते-सुनते भी बोरियत होने लगी है.

सब टीवी का लापतगंज अच्छा लगता है. कछुआ चाचा, मुकुन्दी गुप्ता, मिसरी चाची और इन्दुमति बढ़िया Character है. कभी-कभी मुकुन्दी का रोल कमजोर कर दिया जाता है. जो समझ से परे है. मामा से पिताजी की मज़ाक कुछ ज़्यादा ही उड़वा दी गयी है. जोकि सीरियल को लोकप्रिय बनाने का तरीका हो सकता है. परंतु बहुत ही वाहियात लगता है. कोई अपने पिता का मज़ाक कैसे बना सकता है. मिसरी चाची की सरलता मान को छू जाती है. मुझे अपनीं अम्मा(दादी) की याद दिला देती है. बस जिंदगी फिर चल पड़ती है. क्योंकि तब तक रात हो जाती है. नींद अपने आगोश मे ले लेती है. अगले दिन ओफिस ख़तम होने तक अकेलापन कोसों दूर चला जाता है.
आगे आने वाले दिन बहुत ही बिज़ी होने वाले हैं. HP इंजिनियर से आज बात हो गयी है. शायद मेरी शामें भी site ऑफीस ही मे गुजरेंगी. तब मज़ा आएगा. मैं, मेरे सर्वर और चारों तरफ हरा समुंदर (मुझे तो हरा ही दिखता है). मन बहुत उत्सुक है बहुत दिन हो गये Server hardware के साथ काम करते हुए. बस इसी आशा मे.
अब अगले ३ घंटे व्यस्त रहेंगे. बाल कटाने हैं, नहाना होगा खाना बनाना है. आज रोटी बनाई जाएगी.
चलो भाई अपने पास तो काम आ गया. विदा फिर मिलेंगे.
-मनोज

5 टिप्‍पणियां:

Nandakumar ने कहा…

Bhai Mere, Mere Jaane Se yeh kya hogaya hai tumhe. Life itna bhi ruka nahi hai yaar hamara. Yeh sab akele khaane ka natija hai. Come join the Rice Group. That group has diversified into Roti, Upma and what not.. So come on cheer up

Unknown ने कहा…

Manoj Aisa bhi kya ho gaya bhai, Mujhe pata hee ki tujhe bhabhi ji kee bahut yaad aa rahi hai, sabar ka fal mitha hota hai, dharya rakho.....

Unknown ने कहा…

बचपन मैं एक खेल खेलते थे "हरा समुन्दर गोपी चंदर बोल मेरी मछली कितना पानी". कहने का लब्बो लुआब यही है कि समुन्दर हरा ही है...

Dr sharma ने कहा…

आपका ब्लॉग पढ़कर काफी अच्छा लगा/ एकांत और खालीपन से मस्तिष्क मैं विचारों की बाढ़ सी आ जाती है विचारों का स्तर निर्भर करता है व्यक्ति के तब तक के ज्ञानार्जन और उसके मन की सात्विकता पर/ शायद ये ही सबसे अच्छा तरीका है इससे निबटने का/ विचारों की ऐसी सरलतम अभिव्यक्ति पापा कसम, मजा आ गया पढ़ कर/ कुछ कुछ अपनी सी लगती है........
:) :) :)

लिखतें हैं कुछ लोग ब्लॉग भी लिखतें हैं

Unknown ने कहा…

Yaar Manoj Bhai itna kyu tension le rahe ho, ab to gaddi bhi yaar tumhare pass jara ghumke aayo roj, aisa akele rahoge to kam kaise karoge yaar, hume batao praveen ji to hai na, Nand sahab nahi hai to kya hua,hum bhi aapke dost hai, tension mat lo Thurdays ko hume join karo, kyu praveen sahab?